Thursday 17 December 2015

कविता ३८२. ज़माने के अंदर की सोच

                                                        ज़माने के अंदर की सोच
कुछ सोचा था हमने पर कुछ अलग ही हो जाता है यह हम तो जानते है पर जमाना कहाँ समज लेता है हम जो कहते है उस बात को वह अनदेखा कर देता है
जिसे समज लेना जीवन को जरुरी लगता है जमाने के आगे पीछे जाने से ही जीवन साँसों कि सौगाद दे कर जाता है पर हर बार हर सोच मे जीवन बदलसा जाता है
हम आगे बढते है और जमाना हमे वही रख जाता है क्योंकि बदलना हर जीवन के मुसाफिर कि जरुरत है यह बात जमाना कहाँ समज पाता है
जमाना तो आगे ले जाता है पर सोच को कहाँ जीवन मे आगे ले जा सकता है सोच तो अक्सर जमाना पीछे छोडकर ही आगे बढ जाता है सोच को अगर परखे तो जीवन मतलब दे जाता है
कुछ सोच जो जीवन को मतलब दे जाती है ज़माने को वह हर बार वह रोशन बनाती है पर जीवन की धारा कहाँ हमारे समज में आती है
ज़माने  के अंदर अलग ख़याल वह जिन्दा रख जाती है जीवन के अंदर सोच को एहसास ही जीवन में खुशियाँ लाता है ज़माने मे अलग सोच हमें अच्छा एहसास देती है
ज़माने के भीतर अलग सोच जीवन में नये एहसास देती है जीवन में रोशनी देती है ज़माने में अलग ख़याल जीवन में आगे ले जाते है
ज़माने के अंदर हर बार अलग सोच होती है जो जीवन में नई सुबह देती है हर सोच के भीतर जीवन  मे नई तरीके की रोशनी होती है
ज़माने के अंदर हर कदम अलग ख़याल जिन्दा होता है ज़माने के अंदर अलग अलग ख़याल हर पल जीवन के अंदर जिन्दा होते है
जीवन में हर कदम पर सोच आती जाती है जीवन में अलग किसम की रोशनी होती है ज़माने के अंदर अलग असर हर बार होता है

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