Friday 4 December 2015

कविता ३५७. हाथों मे हो

                                        हाथों मे हो
चुपके से जीवन मे सोच सही कर दो गलती अपनी मान लेने से ज़्यादा मुश्किल होता है दूसरे कि गलती को सही कर दो पर मुमकिन यह कैसे हो अगर दूसरा समजदार न हो
हर बार इस बात पर अटक गई है जीवन कि रेखा क्योंकि मुश्किल तो होता है दूसरों के जीवन को जब सुधार लेना हो जीवन के हर एक मोड़ को हो सके समज लो
क्योंकि जीवन कि धारा को समज लेने के लिए यह ज़रूरी होता है कि अपने मन को अच्छे से हर बार जीवन मे समज लो जो हर मोड़ पर आसानी से मुमकिन हो
जीवन के भीतर हर मोड़ पर जीना हर बार सीख लो अपने मन को मज़बूत करो और सोच मे जीवन का अर्थ हर मोड़ पर हर राह पर अपनी नहीं दूसरों कि गलती भी सुधारना हो
क्योंकि कई बार अपनी चीज़ें कुछ इस तरह से फँस जाती है जीवन मे रोशनी कहाँ आ पाती है जीवन कि हर बाज़ी सिर्फ़ अपने लिये ना हो क्योंकि हर चीज़ साँजी होती है यह बात मन से मंज़ूर करो
अपनों से अलग होकर खाँक कोई क्या जी पाता है जीवन मे  सही अपनों को ढूँढ़ना भी ज़रूरी होता है अपना तो बस वही है जिसकी सोच हमारे जैसी हो
जो पानी कि बूँदे है वह साथ आने से सागर बनती है अपना किनारा तभी मिलता है जब हमे ग़लत को सही करना आता है हर बार अपनी नहीं कभी दूसरों कि गलती पर अफसोस करना होता हो
सोच के अंदर सात प्रहर अलग अलग अंगों का किस्सा होता है जिसे मन से चाहे उसी सोच मे ख़ुशियाँ होती है तो जीवन कि सही दिशा वही है जब उस सोच अपना घरोंदा हो
जीवन के हर राग को गाने के लिए हर बार अलग अलग गीतों का बसेरा होता है जीवन को जो साँसें देता है उस गीत मे ही हर बार हमारा बसेरा हो
क्योंकि उस राह मे सबेरा होता है जिसमें जीवन का उजाला होता है फुरसत मे समज लेना जीवन को क्योंकि वह सबसे ज़रूरी होता है पर अच्छा तो मन को तभी लगता है जब अपनी चीज़ कि किस्मत हमारे हाथों मे हो

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