Wednesday, 23 December 2015

कविता ३९४. मिट्टी की चीज

                                                              मिट्टी की चीज
परबत के अंदर मिट्टी तो होती है उसमें जीवन की धारा होती है मिट्टी की गुफा जिसमें दुनिया बसती है परबत के भीतर दुनिया बसती है
मिट्टी के घर तो आसान तरीके से नहीं बनते पर फिर गुफा से ज्यादा वह प्यारे लगते है क्योंकि परबत की जो चीज है वह परबत माँग लेते है
दुनिया की हर धारा को हम हर पल समज नहीं पाते है जो हम अपने लिए मेहनत से बनाते है वही हम पाते है पर कभी कभी मिट्टी के घर भी गिर जाते है
मिट्टी के अलग तरीके से बने घर जीवन में मुश्किल से मिलते है पर जाने क्यों जीवन में वह अलग असर हर बार कर जाते है
मिट्टी के जो घर जिन्हे अलग अलग रूप में हमने मेहनत से बनाया है जाने क्यूँ जीवन में ऐसे तूफ़ान आते है जो उन्हें तोड़ भी देते है
मिट्टी के घर जीवन की उम्मीद लगते है पर वह घर नहीं उम्मीद तो उन घरों में रहनेवाले होते है मिट्टी की चीजे तो कुदरत की देन है जो मिट्टी में जाती है
पर अफ़सोस तो उस बात का है की वह लोग जो उस घर में रहते है वह भी तो मिट्टी के ही होते है पर क्यूँ डरते है हम उस मिट्टी से जब हम उस से जुड़े हुए ही होते है
मिट्टी से जुड़ना ही तो होता है तो फिर क्यूँ ना इस मिट्टी पर खुल के हम जी ले क्यूँ डरे हम तूफ़ानो से आखिर में वह हमें मिट्टी ही तो देते है
जो मिट्टी से आया है वह क्यूँ कतरा जाये मिट्टी से आखिर मिट्टी में ही हम जीवन को जीते है मिट्टी को समजे तो जीवन हम उसमें ही पाते है
तो अगर हम खुल के जीना चाहे तो मिट्टी से डरना सही नहीं होता है क्योंकि हमें जो मिट्टी से मिलता है वही तो हमारा सच होता है तो फिर से उस मिट्टी से उग जाना हमे हर बार आता है 

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