Thursday 9 August 2018

कविता. २३१५. सूरज और परछाई।

                                                   सूरज और परछाई।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे बचपन कि यादे लाती है पर सूरज कि किरणों को छू लेने पर उंगली जल जाती है एक अलगसी आह मुंह से निकल आती है पर परछाई को छूना तो बचपन का एक खेल है सूरज को छू ने कि कोशिश जिन्दगी कहलाती है परछाई तो हर पल कि सहेली है पर सूरज से कतराती है पर जीवन कि कहानी अक्सर सूरज और परछाई दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे लम्हों कि ठंडक देकर जाती है पर सूरज कि गर्मी से ही चुल्हे कि आग जल पाती है एक अलगसी उम्मीद दिशाओं से उजागर होती है किनारों कि अलग कहानी सुनाती है हर लहर को तूफान बनाकर जाती है पर तूफानों से लडकर ही तो जीवन कि मंजिल आती है पर परछाई अपने शीतल पानी से प्यास बुझाती है जीवन कि धारा दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे एहसासों कि दिशाएं देती है पर सूरज कि गरमाहट से एहसासों कि धाराएं कुछ झुलस जाती है एक अलगसी आंधी सुबह के आसमान मे लाती है हर अंगारे से जंगलों को जलाती है पर जो सूरज कि किरणों पर काबू कर लेती है वह नजर हि सही दास्तान ले आती है पर परछाई कि आस उसको भी उम्मीद दिलाती है जीवन कि आस दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे दिशाओं कि पुकार देती है पर सूरज कि रोशनी नयी सुबह कि दास्तान के बदलावों कि उमंग दे जाती है हर दिशा को कई आवाजों कि गूंज सुनाई देती है वह हर किनारे को कुछ इस तरह से रोशनी कर जाती है हर परछाई किसी कोने मे छुपी चिडीया नजर आती है पर परछाई कि आदत तो हर पल को अदा दिलाती है जीवन कि गाडी दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे आशाओं को पकडने उमंग देती है पर सूरज कि किरणों मे चलने कि राह नजर आती है जो दिशाओं को समझ लेने कि जरुरत खयालों के संग देती है जो कदमों को बढते जाने कि कहानी सुनाती है हर लम्हा एक अलग लहर कि रोशनी को बदलावों कि उमंग लाती है पर परछाई कि कोशिश तो  मीठी मुस्कान दिलाती है जीवन कि तलाश दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे अंदाजों को लहरों कि भांति बदलाव देती है पर सूरज कि आशाओं कि पहचान उसकी कठोरता मे नजर आती है जो जीवन मे आशाओं कि परीभाषा बदलकर अलग सुबह लाती है हर चट्टान से टकराने कि दिलचस्प कहानी लेकर आती है पर परछाई कि ठंडक हि विश्राम के दो पल लाती है आस अधूरी पूरी कर जाती है जीवन कि कोशिश दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे राहों को उम्मीदों कि तलाश को इशारे देती है पर सूरज कि उमंग कि अहमियत अलग जलन भी लाती है हर दिशा को आग से भरकर एहसासों कि रोशनी लाती है हर लम्हा जीवन को एक मशालसी बनाती है जीवन कि वाती ज्योती संग जलकर राह दिखाती है पर परछाई कि मासूमियत हर खयाल को नया तरंग लाती है जीवन कि उमंग दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे कदमों को राहों कि पुकार कि रोशनी देती है पर सूरज कि आस कोई आग जीवन मे ले जाती है जिसे हर पल परख लेने से दुनिया रोशन हो जाती है जो जीवन मे नये सुबह के इशारे देती है जो जीवन मे नयी शुरुआत कि आंधी कदमों को देकर जाती है पर परछाई कि ठंडक संध्या कि हलचल को चुपकेसे लाती है जीवन कि मासूम दास्तान दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे किनारों कि प्यास बुझाती है पर सूरज कि रोशनी नयी आग जगाती है जो धीरे से बढ़कर आसमान तक जाती है एहसासों कि धाराओं को बदलाव कि आवाज सुनाती है हर नियम कि धारा पर सवाल उठाती है सच्चाई कि आंच पर जलकर सुलगकर नयी जिन्दगी चाहती है पर परछाई कि कोशिश मुस्कान का मलहम लाती है जीवन कि पुकार दोनों से जुड जाती है।
परछाई को छू लेते है मुस्कान लबों पर बचपन कि आ जाती है जो जीवन मे खेलों कि याद आ जाती है उसे पकडने कि कोशिश मे श्याम गुजर जाती है पर सूरज कि रोशनी परछाई को छुपाती है चुपकेसे उस खेल का हिस्सा बन जाती है सूरज कि रोशनी जो कई बार जलाती है मासूमियत से इस खेल का हिस्सा बन जाती है हर पल को खास बनाने कि कोशिश दोनों मे नजर आती है जीवन कि हर सांस दोनों से जुड जाती है।

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